Skip to main content

केदारनाथ धाम की यात्रा

केदारनाथ धाम यात्रा के पहले पड़ाव में सोनभद्र से प्रयागराज (UPSRTC की बस द्वारा) व प्रयाग राज से हरिद्वार (भारतीय रेल द्वारा) पहुचा गया, हरिद्वार एक आश्रम में मामूली सहयोग राशि देकर रात्रि विश्राम हुआ और अगले दिन सीतापुर (सोन प्रयाग से थोड़ा पहले, फाटा से थोड़ा आगे) तक का सफर प्राइवेट टैक्सी द्वारा तय किया गया और सीतापुर के एक होटल/लॉज में रात्रि विश्राम कर अगली सुबह गौरी कुंड से बाबा केदारनाथ जी के लिए यात्रा प्रारंभ की गई।
Day 1,2,3

I would like to add that all the non-centric pics of nature are taken on a moving vehicle by using Canon EOS 1300D & Selfies as well as personalised pics by Infinix Note 5












Day 4
Early Morning..यात्रा की शुरुआत..गौरी कुंड से पैदल श्री केदारनाथ धाम तक,
भीमबली तक पहुचते पहुचते सारी एनर्जी खत्म और मजबूर हो के खच्चर/घोड़ा लेना पड़ा, जंहा सरकारी रेट ₹ 1250 था लेकिन अनभिज्ञता के कारण ₹ 2000 देने पड़े, इसलिए आप नीचे से ही घोड़ा/खच्चर ले लें जंहा इस बार का निर्धारित किराया ₹ 2300 है। वापसी के समय भले ही पैदल आ जाएं।
उससे  भी बेहतर यदि आपके पास समय है तो एक हफ्ते पहले ही हेलीकाप्टर सेवा बुक कर सकते हैं जंहा 5 सर्विस प्रोवाइडर इस बार अपनी सेवाएं दे रहे हैं और सम्भवतः एक हफ्ते बाद की कन्फर्म बुकिंग मिल जाएगी। जंहा घोड़े-खच्चर से 3 से 4 घण्टे लगते हैं वंही पैदल पहुचने में औसतन 6 से 10 घण्टे लग जाते हैं, वंही हेलीकाप्टर द्वारा फाटा हेलिपैड से 7 से 10 मिनट में श्री केदारनाथ धाम पहुचा जा सकता है।













अंततः पहुचे अपने इस ट्रिप के ड्रीम डेस्टिनेशन तक श्री केदारनाथ जी के दर्शन हेतु..
सबसे पहले, रात के विश्राम की व्यवस्था हेतु टेंट/डॉरमेट्री (₹300/₹400 प्रति व्यक्ति स्लीपिंग बैग के साथ) बुक किया गया क्यों कि भीड़ बहुत ज्यादा थी और जगह कम, फिर मंदिर की तरफ प्रस्थान, हल्की बर्फबारी और बारिश के बाद निकले मंदिर की तरफ जंहा चारों ओर बर्फ पहले से मौजूद और हरी वादियों से घिरा,
संध्या आरती और रात में मंदिर का नज़ारा देखते ही बनता है,
तत्पश्चात निःशुल्क भंडारे और चाय का सेवन हुआ,
और ये ठंड ऐसी कि..
















स्लीपिंग बैग- बॉक्स नुमा रजाई का सिली हुई आकृति जिसमें एक सिरे पर चेन लगी होती है और उसमें घुस के लेट जाने पर चेन बंद कर आराम से सो सकते हैं, साथ ही सोते समय कीमती वस्तुएं जैसे मोबाइल, कैमरा, पावर बैंक, वॉलेट, पर्स इत्यादि भी आराम से रखा जा सकता है वो भी एकदम सुरक्षित। और अंदर से इतना गर्म कर देता है कि शरीर पर के कपड़े भी निकालने पड़ गए।

अगले दिन Day 5 सुबह सुबह श्री केदार जी का दर्शन व प्रस्थान का समय..
वापसी के रास्ते मे हिमखंड का लुत्फ उठाते हुए और Mountain Water का सेवन करते हुए पैदल ही हम लोग वापस गौरी कुंड तक चले आये, नीचे आते समय कोशिश करें कि घोड़ा/खच्चर न करना पड़े क्यों कि दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है। चूंकि चढ़ाई पर चढ़ते समय कई दुर्घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी बना गया इसलिए घोड़े/खच्चर पर वापसी की हिम्मत नही हुई।
रास्ते भर खाने पीने के समान दुगुने दाम पर मिलते हैं जो कि वाजिब है क्यों कि इतनी चढ़ाई पर चढ़ के ये सब सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। जैसे आलू के पराठे ₹50, चाय ₹20, पानी की बोतल ₹40, साधारण भोजन ₹200 थाली इत्यादि। क्वालिटी की बात न सोचें, मिल जा रहा यही बहुत है।











केदारनाथ से बद्रीनाथ के सफर के लुत्फ के लिए देखिये अगला ब्लॉग
वीडियो देखने के लिए नीचे दिए लिंक को टच करें
अच्छा लगे तो सब्सक्राइब भी कीजियेगा
https://youtu.be/uA5sQuIjPUk
https://youtu.be/o-Y0LGrs9ms

Comments

Popular posts from this blog

Weekend Trip to Silhat Dam as well as Nagwa Dam, Sonbhadra, UP, India

यात्रा की शुरुआत हम लोगों ने सबसे पहले सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज मुख्यालय से शुरू की वहां हम लोगों ने पता करने पर पाया कि कुछ ही दूर पर रामगढ़ नाम का एक बाजार है जहां से सिलहट डैम और नगमा डैम के लिए रास्ते जाते हैं और यह भी पता लगाया कि वहां आसपास रुकने के लिए कोई भी होटल या कोई भी धर्मशाला वगैरह नहीं है हम लोगों ने वहां से कैब ली और आगे नई बाजार होते हुए रामगढ़ बाजार पहुंचे लगभग 30 किलोमीटर की दूरी आधे घंटे में तय हुई  रास्ता अच्छा था। रामगढ़ बाजार से थोड़ा आगे बढ़ने पर पन्नू गंज थाना पड़ता है जहां से दाहिने साइड हम लोगों ने अपनी गाड़ी मोड़ ली। उस रास्ते से करीब 4 किलोमीटर आगे जाने पर एक नहर मिलती है उस नहर  की तरफ हम लोग बाएं मुड़ गए और उसी नहर को पकड़ के आगे बढ़े । स्थानीय लोगों ने बताया कि यह नहर सिलहट डैम से होकर आ रही है हम लोग उसी नहर के किनारे किनारे आगे बढ़ते चले गए रास्ता बढ़िया है बाइक से भी जाने लायक है फोर व्हीलर से भी जाने लायक है जिस भी साधन से आप जाना चाहें, जा सकते हैं। थोड़ी ही देर में हम लोग पहुंच गए पहुंचने के बाद हल्की बारिश हो चुकी थी मौसम बहुत सुहावना...

चलिये इस बार घूमने चलते हैं दक्षिण भारत के कुछ प्रांत में..

 चलिये इस बार घूमने चलते हैं दक्षिण भारत के कुछ प्रांत में.. सबसे पहले सोनभद्र से मिर्ज़ापुर,लखनऊ होते हुए बंगलुरु तक के सफर की बातें.. मौका था अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अधिवेशन का, जो कि आयोजित था कर्नाटक राज्य के बंगलुरू में। तो हुआ कुछ यूं कि संघमित्रा एक्सप्रेस जो कि हमारे नजदीकी रेलवे स्टेशन मिर्जापुर (जी हां वही कालीन भैया वाला मिर्जापुर) से बेंगलुरु के लिए हमने बुक की थी, स्लीपर क्लास में, क्यों कि और  दूसरे कम्पार्टमेंट में जगह खाली नही थी क्यों कि इस रूट पर, गन्तव्य के लिए एकमात्र यही ट्रेन उपलब्ध है। रात के 12 बजे के आस पास का समय, तभी धीरे से दबे पांव वो ट्रेन स्टेशन पर लगी और ये क्या !!! ट्रेन के स्लीपर कोच में पांव रखने तक की जगह नही ! आज की रात, कल का दिन, कल की रात, परसों का पूरा दिन था जो कि इसी ट्रेन में गुजारना था, सो हम लोगों ने ट्रेन में बोर्ड न करने का निर्णय लिया। हम लोग मतलब (संघ के पदाधिकारीगण के रूप में हम सात लोग)। फिलहाल वैकल्पिक व्यवस्था के अंतर्गत सिर्फ और सिर्फ हवाई मार्ग का ही विकल्प उपलब्ध था ससमय अधिवेशन में पहुचने के लिए...

दक्षिण भारत भाग दो

 गतांक से आगे.. तो अब बात मुद्दे की, मुद्दा था ABRSM के राष्ट्रीय अधिवेशन में जंहा हमें तीन दिनों तक प्रतिभाग करना था, महासंघ द्वारा चुने गए स्थान पर एयरपोर्ट/रेलवे स्टेशन से पहुचाने की जिम्मेदारी जिन कर्मठी साथियों को दी गयी थी वो पूरी तन्मयता से रात के दो बजे भी हम लोगों के लिए एयरपोर्ट के बाहर मुस्तैद मिले। एकबारगी तो लगा शायद खुद से ही लोकेशन ट्रैक करके पहुचना होगा लेकिन ये क्या ! एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही ABRSM की टीम मौजूद थी। जल्दी ही हम लोगों को कैब द्वारा गन्तव्य तक रवाना किया गया, कैब में बैठने से पहले हम लोगों ने सोचा कि कैब तो 5 सीटर है तो एडजस्ट करके 5+1 (ड्राइवर) जरूरत पड़ने पर कर लेंगे, लेकिन हम यूपी में नही थे, वँहा हमारे सारथी ने बताया कि गाड़ी में केवल तीन पैसेंजर बैठेंगे, तो हम 7 लोगों के लिए तीन कैब की व्यवस्था ABRSM टीम द्वारा तुरन्त कर दी गयी। अब चूंकि वँहा से भी करीब एक डेढ़ घण्टे की दूरी पर चेननहल्ली नामक वो जगह थी जंहा हमें पहुचना था और कैब में रात के दो से तीन के बीच का समय, नींद और झपकी आनी तो लाज़मी थी, तो हम भी उसी में एक हल्की नींद मार लिए, और फिर आधी नीं...