रात के 12 बजे के आस पास सोये ही थे कि 3 बजे गाड़ी वाले भाई साहब का फोन आ गया कि सर मैं किधर आऊं रिसीव करने, उनको व्हाट्सएप पर लोकेशन भेजी और वो आ गए हमारे होटल, फिर जल्दी जल्दी नहा धो के निकले होटल से बाहर..
अरे ये क्या !
सुबह के चार बजे उजाला
परिवार के सदस्य ये देख के चकित, चूंकि मै नार्थ ईस्ट का ट्रिप कर चुका था तो मुझे इतनी हैरानी नही हुई लेकिन वो सुबह गुवाहाटी की एकदम मजेदार।
हम लोग जल्दी से पहुचे कामाख्या जंक्शन जंहा हमारे अन्य साथी हमारा इन्तेजार कर रहे थे। मौसम बहुत ही खुशनुमा और ठंडा था, ठंड इतनी सी थी कि रात में AC चलाते ही बंद करना पड़ा।
हमारे ड्राइवर भाई साहब ने जल्दी जल्दी सामान ऊपर चढ़ा के बड़ी सी पॉलिथीन से ढक दिया ताकि रास्ते मे बारिश होने पर भी बैग वगैरह न भीगे। आज की यात्रा काफी लंबी थी तो जितना जल्दी हो सकता था निकलना जरुरी था।
अब मेरे लिए एक और अग्नि परीक्षा थी वो ये कि श्रीमती जी इतनी लंबी दूरी की यात्रा कभी की नही थी और उन्हें गाड़ी में वोमिटिंग वगैरह की शिकायत रहती है, उनके दिमाग मे अभी तक के सफर में सिर्फ यही बात कौंध रही थी कि कैसे जाऊंगी छोटी गाड़ी से।
हमने उन्ही के लिए ट्रेवलर बुक की थी लेकिन फिर वही समस्या कि यदि AC उसमें भी चलेगा तो फिर से वोमिटिंग की दिक्कत आ सकती है तो उन्ही के उद्देश्य से टाटा सूमो गोल्ड बुक कर की गई कि शायद ये गाड़ी थोड़ी ऊंची होने के कारण उन्हें कम लगे क्यों कि घर मे छोटी गाड़ी से आने जाने में थोड़ी ही देर में दिक्कत होने लगती थी लेकिन बड़ी गाड़ी में दिक्कत नही हुई, तो मैंने इनसे कहा आपके लिए ट्रक मंगवाए हैं उसी से चलना है !!!
फिर अपने डॉक्टर मित्र द्वारा पहले से कंसल्ट करके Ondansetron की एक गोली यात्रा के एकाध घण्टे पहले खिला दी थी और गाड़ी में बैठते ही होमियोपैथी की दवा Cocculus Indicus 200 की दो चार बूंद उनके मुह में टपका दिए।
(ये सब दवाएं हमने चिकित्सकीय सलाह से उन्हें दी थीं अतः आपको भी यदि ऐसी दिक्कत हो तो बिना चिकित्सकीय परामर्श के बिल्कुल न लें।)
अब यात्रा के तीसरे दिन का सफर शुरू हो चुका था। ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बना सराय घाट ब्रिज पर हम लोग पहुचे ही थे कि नज़ारा देखने लायक था। चारों तरफ प्रकृति अपनी नैसर्गिक सुंदरता को समेटे थी, वँहा से चारों तरफ देखने पर पेड़ पहाड़ बिल्कुल हरे भरे दिख रहे थे, और तो और ब्रिज पे किनारे किनारे लोहे की बैरिकेडिंग भी लगी थी सुरक्षा की दृष्टि से।
जैसे जैसे आगे बढ़ते गए इस हरियाली और रंग बिरंगे फूलों से मुहब्बत होती गई।
अब तक हम लोग शहर से काफी दूर निकल आये थे तो इसलिए रास्ते मे आसाम के लोगों के हरे भरे घर दिखाई देने लगे थे, हरे भरे इसलिए क्यों कि उधर के लोग अपने घरों में गमले बहुत रखते हैं और उसमें तमाम प्रकार के फूल लगा के अपने घर के हर हिस्से को सजाए रखते दिख रहे थे।
आज का सफर हम लोगों को कुल 300 किलोमीटर का था,
इसलिए गुवाहाटी से जितना जल्दी हो सका निकल लिया गया, गूगल बाबा भी 300 किलोमीटर के लिए 8 घण्टे का सफर दिखा रहे थे (सड़क की कंडीशन और जमीन के एलिवेशन के आधार पर)
हमारा आज का टारगेट था दिरांग तक का (दिरांग के बारे में विस्तृत जानकारी अगली पोस्ट में, आज के लिए केवल वँहा तक के सफर की बात करेंगे)
गुवाहाटी से दिरांग तक जाने के दो रास्ते हैं, एक रास्ता तेजपुर हो के भालुकपोंग के रास्ते होकर बोमडिला होते हुए जाता है, और दूसरा रास्ता बालेमू, अरुणाचल व भैरवकुण्ड, उदलगुरी होते हुए बोमडिला की तरफ से दिरांग पहुचता है।
तो हम लोगों ने इसी रास्ते को चुना क्यों कि रास्ते मे भूटान बॉर्डर भी पड़ता था और एक प्वाइंट और बढ़ जाता घूमने का, सच मे ये रास्ता चुनना सबसे बेहतरीन निर्णय था हम लोगो के लिए।
सिक्किम राज्य के उदलगुरी जिले के भैरवकुण्ड जगह पर हम लोग भूटान बॉर्डर तक घूमने गए, अभी भूटान देश ने अपनी सारी सीमाएं आगंतुकों (टूरिस्ट) के लिए बंद कर रखी हैं (कुछ क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि पांच साल के लिए टूरिस्ट अलाउ नही करेंगे) वरना हम लोग कुछ दूर अंदर तक जरूर घूमने जाते, हमारे ड्राइवर ने बताया कि हम लोग डीज़ल/पेट्रोल इधर से ही लेते हैं, इधर सस्ता पड़ता है भारत से,
हम लोगों ने केवल गेट से सेल्फी वगैरह ली और उधर साइड के कुछ ऑफिसर्स से थोड़ी बहुत बातें हुईं,
फिर आगे बढ़ कर हम लोगों ने एक नदी पार की जो कि भूटान देश से जमपानी नाम की नदी और भारत की तरफ से भैरवी नाम की नदी मिलकर धनशीरी नदी का निर्माण करती है जो कि ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी है, उस ब्रिज को पार करते ही हम लोगों के बाएं तरफ दो चार असामीज रेस्टोरेंट मिले जो कि बिल्कुल वाजिब कीमत पर नाश्ता/भोजन उपलब्ध करा रहे थे, वंही नदी किनारे रेस्टोरेंट में बैठे बैठे नदी की तेज आवाज के बीच हम लोगों ने सुबह का नाश्ता किया जो कि वँहा की लोकल डिश रोटी साग अचार थे, नाम नही पता उस रोटी का लेकिन स्वाद घर जैसा लग रहा था, बिल्कुल ताजा ताजा आग पे सिंका हुआ।
यंहा से जब अरुणाचल के चेक पोस्ट पर पहुँचे तो वँहा तैनात जवान ने हम सबका ILP चेक किया, उसके बाद RTPCR की रिपोर्ट भी देखी, फिर अपने रजिस्टर में नोट करके हमे अरुणाचल में एंट्री करने की परमिशन दी।
ये काम मात्र कुछ मिनटों में ही हो गया क्यों कि उस दिन के पहले टूरिस्ट हम ही लोग थे और अभी तक कोई गाड़ी नही आई थी गुवाहाटी की तरफ से।
फिर सफर शुरू होता है, क्या ग़ज़ब के नजारे थे, एकदम हरियाली थी हर जगह, केवल सड़क दिख रही थी बिना हरियाली के नही चारों तरफ सब कुछ हरा हरा, जिसे देख कर हम सबका दिल गार्डेन गार्डेन हो गया।
वंही ज़िंदगी मे पहली बार हमने सुपारी का फल देखा, लंबे लंबे ताड़ जैसे पेड़ पर लटके सुपारी के फल देखे, एक अप्रतिम अनुभव। आगे बढ़ते ही शिमला/मनाली/उत्तराखंड/कश्मीर जैसी वादियां मिलने लगे और जैसे जैसे ऊपर की ओर चढ़ती गयी हमारी गाड़ी वैसे वैसे बादल हम लोगों के एकदम करीब होता गया, एक समय तो लगा जैसे हम लोग बादलों के बीच मे ही गुजर रहे हैं, रास्ते मे एक झरना भी दिखा तो रुक के वँहा भी कुछ फोटोग्राफी हुई और वँहा से आगे की ओर प्रस्थान किया गया। बीच मे एकाक जगह चाय वगैरह पीने के लिए रुका गया क्यों कि ज़िंदा रहने के लिए चाय जरूरी है..
फिर पहुँचे शेरगांव, जंहा हम लोगों ने सड़क के किनारे के पहाड़ों पर फूल गोभी की खेती और वो भी बहुत ज्यादा मात्रा में दिखा, कीवी के बागान दिखे जो कि हम लोगों के लिए एकदम नया अनुभव रहा, अखरोट के पेड़ और फल भी दिखने शुरू हो गए, बढ़ते हुए हम लोग पहुचे बोमडिला मार्केट, बाजार घूमते हुए हम लोग पहुचे Hotel Gori 6th Mile, जंहा एकदम ताजा ताजा भोजन मिला और सबने पेट पूजा की।
थोड़ी देर आराम करके फिर आगे बढ़े अपने गंतव्य की ओर,
दिन भर के सफ़र में इसी तरह घूमते हुए, टहलते हुए शाम में करीब 4 बजे हम लोग पहुचते हैं अपने आज के टारगेट दिरांग में...
क्रमशः
रास्ते मे चाय की कीमत 20 रुपये प्रति कप,
खाना 120/140 रुपये प्रति थाली (अनलिमिटेड भोजन),
साग रोटी 20 रुपये प्रति पीस
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