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पूर्वोत्तर राज्य की सैर (चौथा दिन)



चूंकि हम लोग नार्थ ईस्ट क्षेत्र में थे तो यंहा हमारे उत्तर प्रदेश के समय से करीब एक दो घण्टे पहले ही उजाला हो जाता है, क्यों कि अरुणाचल का तो मतलब ही है सूर्य  का आँचल..

तो सुबह के बज रहे थे 4, हमारी नींद तो पहले ही खुल गयी क्यों कि टीम लीडर हमेशा जल्दी जगता है और अगले ददिन की प्लानिंग करके सबसे लास्ट में सोता है।

आज हमारे लिए एक नया अनुभव होने वाला था क्यों कि आज से हमे दूसरे पायलट के साथ घूमना था और यात्रा का मजा ज्यादा मजेदार तब होता है जब आपके साथ कोई क्षेत्रीय व्यक्ति और एक जिंदादिल इंसान हों, फिर तो सफर के भी चार चांद लग जाते हैं..

तो इंतेजार हुआ खत्म हमारे नए सारथी अपनी धन्नो के साथ ठीक 5 बजे हमारे होमस्टे पर मौजूद, एकदम मेरी तरह समय के बिल्कुल पाबंद (जंहा जरूरत हो) 

नाम था उनका Tenzin भैया, एकदम हंसमुख चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ हमे उन्होंने अपनी भाषा मे मॉर्निंग विश किया "ताशी देलेक सर"

हमने भी जवाब में उन्हें इन्ही शब्दों से नवाजा।

ये दोनों शब्द मोम्पा ट्राइब की एक दूसरे को प्रणाम करने की शैली में आता है और दूसरे राज्य के लोगों से ये शब्द सुनके वँहा के लोग और भी आत्मीयता से भर जाते हैं।

तो आज का हमारा पहला प्वाइंट था मंडला टॉप

यहां पर कुछ महीने पहले यहां के मुख्यमंत्री का आगमन हुआ था और बहुत ही भव्य बुद्धिज़्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। यहां पर 108 बौद्ध स्तूप का निर्माण किया गया है जो कि वृत्ताकार क्षेत्र में बना हुआ जो कि थोड़ी ऊंचाई से देखने में बहुत ही सुंदर लगता है।

रास्ते में ही एक जगह और बुद्ध जी की प्रतिमा मिली जहां पर कुछ फलों के बागान भी थे हालांकि बागान में जाने की अनुमति नहीं थी अतः हम लोगों ने केवल तथागत की प्रतिमा के पास में ही फोटोग्राफी की। वहां पर भी प्राकृतिक दृश्य बहुत ही प्यारा लगा, यहां एक चीज और मेरे लिए नई थी कि अभी तक बुद्ध जी का जो छायाचित्र हम लोग देखते थे अपने घरों में या किताबों में, यहां पर जो उनकी प्रतिमा स्थापित की गई वह बिल्कुल अलग रूप में दिखी। पहले तो सहसा विश्वास नहीं हुआ लेकिन हमारे सारथी भैया ने बताया तो माना कि यह बुद्ध जी की ही प्रतिमा है और आप भी देखेंगे तो थोड़ा सा अचंभे में आएंगे। जो लोग पहली बार इस क्षेत्र में आये होंगे वो जरूर विश्वास नही करेंगे बाकी जो लोग यंहा पहले आए रहे होंगे उनके लिए ये नई बात नही।

तो हम लोग इस तरह से घूमते घूमते मंडला टॉप पर पहुंचे लेकिन हमारे ड्राइवर साहब तेनजिन भैया ने कहा कि नहीं सर अभी यंहा रुकेंगे नही, अभी और आगे चलते हैं आपको एक जगह और दिखानी है, वहां बहुत कम टूरिस्ट लोग जा पाते हैं।

थोड़ा आगे बढ़ने पर पता चला है कि आगे एक हाईवे बन रहा था जो कि शॉर्टकट रूप में सेला पास तक जाता है।

मंडला टॉप से लगभग 2 किलोमीटर आगे जाने पर एक याक ग्रेजिंग एरिया मिली जहां पर याक रहते हैं, जब ऊपर पहाड़ों पर बर्फ ज्यादा पड़ने लगती है तो याक मंडला तक आते हैं और इसी क्षेत्र में वो अपना समय बिताते हैं फिर यहां से तब वापस ऊपर जाते हैं जब यंहा हल्की गर्मी पड़नी शुरू होती है।

क्योंकि हम लोग जब गए थे तो बहुत ही ज्यादा ठंड थी फिर भी यह उनके लिए गर्म ही था, हम लोग तो जैकेट पहने हुए थे और बादल बार-बार हम लोगों को छूने का प्रयास कर रहे थे। इस मौसम में याक धीरे-धीरे पहाड़ों को चढ़ते हुए सेला और तवांग की तरफ चले जाते हैं इसीलिए फिलहाल में हम लोगों को यहां कोई याक नहीं मिला मगर इस स्थान को देखा,इतना प्यारा दृश्य, एकदम फिल्म की शूटिंग टाइप का, वैसा ही दृश्य देखने को मिला और सभी लोग बहुत खुशी से उन पलों का आनंद लिए।

उस जगह में बहुत ही सुकून मिला, हम लोगों के जाने और आने तक में कोई भी टूरिस्ट वहां नहीं गया था फिर जब हम लोग लौट कर के मंडला टॉप पर आए वहां पर हम लोगों में महामानव गौतम बुद्ध जी की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना भी की और उसके बाद हमने उस जगह को घूमा जंहा 108 स्तूप बने थे, बहुत ही अच्छा लगा।

वहां पर भी मौसम बहुत खुशनुमा था, हमारे घूमते हुए ही आधे घंटे के बाद चार पांच टूरिस्ट की गाड़ियां आई और वहां पर फिर अचानक से थोड़ी भीड़भाड़ वाली रौनक दिखने लगी।

नए ट्रैवेल डेस्टिनेशन के रूप में बहुत ही शानदार जगह, पूर्ण रूप से प्रकृति की गोद मे। मंडला टॉप पर एक दो रेस्टोरेंट हैं जंहा चाय, मैगी और पैक्ड सामान मिल रहा था। अगर सुकून चाहिए कुछ दिन का तो इससे बढ़िया जगह नहीं हो सकती। शहर के शोरगुल से बिल्कुल दूर बहुत ही अच्छा लग रहा था। आप लोग भी जाएंगे आपको भी अच्छा लगेगा ।

दिरांग से मंडला टॉप तक का रास्ता भी बहुत से व्यूज अपने अंदर समेटे था।हमने उन रास्तों को पूरा इंज्वाय किया उसके बाद हम लोग फिर आ गए दिरांग को तरफ और फिर अपने डेस्टिनेशन को बदलते हुए हम लोग पहुँचे थेमबांग हेरिटेज विलेज की ओर, जो कि लगभग 40 किलोमीटर दूर था दिरांग गांव से। (ज्यादा भी हो सकता है मैं एक नॉर्मल आंकड़ा बता रहा हूं ।)


अरुणाचल के रास्ते मे अक्सर मॉनेस्ट्री के आसपास हम लोगों ने एक गेट बना हुआ देखा था और हमने पूछा अपने ड्राइवर भैया से, चूंकि वो भी मोम्पा ट्राइब से ही थे तो उनको भी बहुत अच्छी जानकारी थी और उस रूट पर टूरिस्ट को हमेशा घुमाते हैं, वो पिछले आठ नौ साल से ये काम कर रहे हैं, तो उनको बेहतरीन जानकारी थी। वो ऐसी ऐसी जगह भी घूमाने ले कर गए जहां पर बहुत कम टूरिस्ट लोग जा पाते हैं या जिन को नहीं पता होता तो नहीं जा पाते हैं।

तो हमने पूछा इन गेट का उद्देश्य क्या था तो उन्होंने कहा कि ऐसी मान्यता रही है कि इस गेट के नीचे से कोई जानवर यदि गुजर जाता है तो उसको अगले जन्म में मनुष्य का जन्म मिलेगा, ऐसी मान्यता होने के कारण हमारे पूर्वजों की इस धरोहर को अभी तक संरक्षित करके रखा गया है।

ऐसे ही घूमते हम लोग पहुंचे उस हेरिटेज गांव में जो कि माना जाता है कि 1100 CE पुराना गांव है। इस गांव के निवासी भी मोम्पा ट्राइब के ही होते हैं जो कि महात्मा गौतम बुद्ध के अनुयायी अर्थात बुद्धिस्ट होते हैं।

थोड़ी सी सीढ़ियों की चढ़ाई चढ़ने पर इस गांव में हम लोगों का प्रवेश होता है, वहां के पुराने जमाने के घर को देखा,वहां के लोगों से मिले उनकी जीवनशैली को जानने की कोशिश की, वहां पर सब से अलग हमको चीज मिली, लकड़ी की बनी सीढ़ी जो कि किसी 12/15 फ़ीट लंबे पेड़ को बीच बीच से छीलते हुए बनी थी, मतलब उसी पेड़ को हल्का खोखला करते हुए सीढ़ियों के स्टेप्स बनाये गए थे और इसी सीढ़ी का उपयोग अपने घर के ऊपरी हिस्से में जाने के लिए किया करते हैं। अपने घर के ऊपरी हिस्से में ये लोग अनाज रखते हैं तथा एक चूल्हा भी रखते हैं जिसकी सहायता से मक्के से शराब बनाते हैं और उसका सेवन करते हैं।

अभी हम लोग घूम ही रहे थे कि अचानक से बारिश शुरू हो गयी, हम लोग जल्दी से नीचे सड़क पर उतर आये क्यों कि यदि बारिश अच्छी हो जाती तो नीचे उतरना काफी मुश्किल हो जाता, सीढियां पत्थर और मिट्टी की थीं तो पांव फिसलने का डर रहता। उस गांव के पीछे वाले गेट से नीचे जाने पर अरुणाचल सरकार द्वारा दो मंजिला विद्यालय बना था जंहा उसी गांव के बच्चे पढ़ते हैं।

उस गांव से वापस आते वक्त हमने पानी से चलने वाली चक्की भी देखी जिसमे पहले के समय के लोग पानी के प्रेशर से गेहूं पीसते थे। ऊपर पहाड़ों से आने वाली पानी को एक बेलनाकार आकार की आकृति से टकराया जाता है जिससे वो आकृति घूमने लगती है और उसकी सहायता से ही पिसाई का काम लिया जाता था।

आगे बढ़ने पर जंगल मे एक ऐसी जगह मिली जंहा आग लग जाने के कारण पेड़ पौधों, पत्तियों, टहनियों का रंग एक समान हो गया था और देखने मे बिल्कुल अलग लुक दे रही थीं, लेकिन राख में नही बदली थी तो यंहा रुक के कुछ समय बिताया गया, फिर आगे मेन हाईवे के पास एक होटल पर चाय पी गयी जंहा चाय की कीमत मात्र 10 रुपये मिली। चाय वँहा की बहुत अच्छी लगती थी। रास्ते मे एक छोटा झरना भी मिला जंहा बारिश के बाद काफी तेजी से पानी आता है, और जो कि सड़क से 50 मीटर अंदर है, वँहा बहुत से लोग नही जाते हैं, लेकिन पिछली शाम को दिरांग विलेज घूमते समय एक मित्र ने हम लोगों को वो जगह घूमने के लिए सजेस्ट की थी इसलिए हम लोग वँहा भी गए और ठंडे ठंडे पानी से खूब खेले।

अब शाम के 5 बजने को आये और अंधेरा होने वाला था तो हम लोग कुछ ही देर में वापस अपने होम स्टे आ गए और डिनर का इंतेजार करने लगे।


मंडला टॉप पर चाय 20₹

मैगी 40 ₹ प्रति प्लेट

थेम्बांग मोड़ पर चाय 10₹

मैगी 40 ₹ प्रति प्लेट

क्रमशः




































































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