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पूर्वोत्तर राज्य की सैर (आठवां दिन)

कल की ऊर्जा समेटे हम लोग तैयार थे अपने डगर के लिए,तवांग में दो दिन बिताने के बाद भला ऊर्जा का संचार क्यों न हो !
उसके पहले होटल का हिसाब क्लियर करने हम लोग ऑफिस में पहुचे तो बिल देख के माथा ठनका!
अरे ये क्या !!
तवांग में इतने समय रुकने के बिल में केवल स्टे चार्ज जुड़ा है, चाय का कोई बिल नही, पानी का कोई बिल नही और यंहा तक कि एक रात के डिनर का भी बिल नही !
हमने सोचा शायद गलती हो गयी हो जोड़ने में तो हम लोग पहुचे ओनर भैया के पास, उन्होने रियल जूस के दो बड़े टेट्रा पैक हमे थमाते हुए बोला,"सर, बिल एकदम सही बना है, आप निश्चिंत रहें, हमने केवल आपसे आपके रुकने का खर्च  लिया है क्यों कि ऐसे लोग ज़िन्दगी में कभी कभी ही मिलते हैं।"
 मैं भाव शून्य हो गया और थोड़ा सेंटी भी, वँहा के लोगों की इतनी अच्छी हॉस्पिटैलिटी, अपनापन, लगाव ये सब तो मिला ही साथ ही उम्र भर के लिए यादे भी मिलीं। उन यादों को सहेज के रखने लिए वापस आना जरूरी था, बुझे मन से ही सही हम लोग अपने वापसी का सफर शुरू करते हैं। होटल से निकलते ही वँहा के ओनर के साथ एक ग्रुप फ़ोटो सेशन हुआ और उनका द्वारा दी गयी शुभकामनाओं को स्वीकार करते हुए, पुनः आने का वादा कर, हम लोग निकल पड़ते हैं अपने सफर पर।
तवांग से लगभग 34 किलोमीटर आगे आने पर नाश्ते के लिए हम लोग रुकते हैं 62 Down Hill Restaurant पर जो कि पड़ता है जॉन्ग नामक जगह पर, सुबह  का समय था तो भीड़ बिल्कुल भी नही, हम लोगों में पूरी सब्जी का ऑर्डर दिया जिसकी कीमत 80 रुपये प्लेट थी चार पूड़ियों के साथ और फिर बैठ गए उनके पीछे वाले हिस्से में, वँहा से पहाड़ का क्या खूबसूरत दृश्य दिखाई दिया, बंया नही हो सकता, उस खूबसूरती को कैमरे में कैद करने की नाकाम कोशिश भी की मग़र असफलता हाथ लगी इसलिए दिखा नही सके आप लोगों को।
वँहा से आगे लगभग 36 किलोमीटर के पास और पहुचे उस जगह जो कि जाते वक्त हम लोगों ने कोहरे की वजह से ड्राप कर दिया था..सेला पास
सेला पास और सेला लेक की खूबसूरती के क्या कहने !
एकदम खुला आसमान, और दूर दूर तक पहाड़ पर फैली बर्फ साफ दिख रही थी,
उस समय के माहौल को आत्मसात करना शूरू ही किये थे कि ये क्या!!
अचानक से धुन्ध ही धुन्ध,
कोहरा ही कोहरा फैल गया और ठंड भी बढ़ गयी, इसकी वजह से हम लोग लेक की तरफ नीचे न जा सके, लेकिन वँहा लगे फूलों के साथ हम लोग खेले जरूर और फिर सेला द्वार की तरफ बढ़े जो कि मात्र 500 मीटर दूर था, वँहा भी कोहरे की वजह से विजिबिलिटी जीरो थी, कुछ समय बाहर बिताने के बाद हम लोग बढ़ चले अपने गंतव्य की तरफ।
सेला पास से तकरीबन 18 किलोमीटर आगे हम लोग रुके Baisakhi Army Cafeteria पर जो कि Sela Warriors Camp, Indian Army के ठीक सामने था, वँहा हल्का फुल्का नाश्ता किया गया और वंही आर्मी द्वारा संचालित GST फ्री शॉप्स भी थीं जंहा से टीम के सदस्यों ने कुछ खरीदारी भी की। जगह बहुत ही अच्छी थी, आप यदि जाएं तो जरूर रुकें। फिर हम लोग वँहा से चल दिये अपने सफर की ओर और 48 किलोमीटर के सफर के बाद सीधे पहुचे अपने होमस्टे Dirang Dzong Homestsy, Dirang Village पर।
सफर की थकान मिटाने के लिए कुछेक घण्टे आराम करके फिर से घूमने का मन हुआ तो हम लोग चल दिये अपने होस्ट के दूसरे होमस्टे को देखने जो कि पास में ही पहाड़ी पर बना था, वँहा पहुच के लगा हम लोगों को अब अगली बार इस जगह रुकना चाहिए यदि दुबारा आना हुआ तो, यंहा एक कमरे के साथ किचन भी उपलब्ध था जिसे बहुत ही नॉमिनल कीमत अदा करके कोई भी उपयोग कर सकता था। बाकी सारी व्यवस्था बहुत अच्छी थीं। आंटी जी ने कैम्पस में ही अनार, सन्तरा, लीची,अखरोट और तमाम फलों के पौधे भी लगा रखे थे जो कि सीजन में टूरिस्ट लोगों के लिए वेलकम गिफ्ट रहता है। वहां से सामने नदी और पहाड़ी का व्यू बहुत ही शानदार लग रहा था और मौसम वँहा ऐसे ही हमेशा सुहाना बना रहता है।
फिर हम लोग कुछ हिसाब किताब फाइनल करने पहुचे अपने होस्ट की शॉप में, वहां बातो बातो में पता चला कि आज के लिए हम सबका डिनर और ड्रिंक, उन लोगों की तरफ से पूर्णतया निःशुल्क रहेगा,हम लोग कुछ बोल पाते उसके पहले ही अंकल ने कहा आज मेरे हाथ का बना चिकन आप लोगों को खाना है, नॉन वेज वालों की तो बांछें खिल गयीं (सबसे ज्यादा मेरी) और नॉन वेज वालों के लिए पनीर की सब्जी बनने की प्रक्रिया शुरू हुई, हम लोग मिल जुल कर रात का खाना बनवाया और अपने होस्ट की फैमिली के साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया गया, अंकल जी से वँहा की लोकैलिटी के बारे में ढेर सारी जानकारी मिली, वँहा की  सभ्यता के बारे में जानकारी हुई, उनके व्यक्तिगत अनुभवों के पिटारे से बहुत कुछ मिला हम लोगों को..
क्रमशः























 

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