पूर्वोत्तर राज्य की सैर (तीसरा दिन, दूसरा भाग)
तो जैसा कि शाम 4:00 बजे तक हम लोग अपने आज के डेस्टिनेशन दिरांग विलेज में पहुंच चुके थे,बात करते हैं दिरांग की।
जब हम गुवाहाटी से तवांग के लिए आगे बढ़ते हैं तो बीच में रुकने के लगभग 2 फेमस जगह है पहला तो पड़ता है बोमडिला और दूसरा पड़ता है। प्रसिद्ध जगह होने की वजह से अधिकांश टूरिस्ट बोमडिला में ही रुक जाते हैं और बोमडिला से वो सीधे तवांग निकल जाते दिरांग नहीं रुकते। बोमडिला थोड़ा क्राउडी होने के कारण हमारी लिस्ट में नहीं था हम लोग ऐसे जगह का चुनाव किये जहां पर भीड़ कम हो और सुकून मिले, तो इसी वजह से हमने दिरांग विलेज को चुना था।
दिरांग में भी दिरांग मार्केट और दिरणफ विलेज दोनों अलग-अलग जगह हैं, दिरांग मार्केट जो है वह बाद में बसाया हुआ नगर है जहां पर सारे सरकारी कार्यालय मौजूद हैं और विभिन्न प्रकार की दुकानें भी हैं जंहा आपको लगभग हर चीज उपलब्ध हो जाएगी लेकिन दिरांग विलेज जो है वो दिरांग मार्केट से 5 किलोमीटर पहले ही पड़ जाता है और इस विलेज में यहां के जो मूल निवासी है मोम्पा ट्राइब के वो लोग रहते हैं। ये पूरा का पूरा क्षेत्र या पूरा का पूरा गांव उन्हीं मोम्पा ट्राइब लोगों का है और जिस में किराए के रूप में कुछ लोग रहते हैं कुछ टूरिस्ट आते जाते रहते हैं। यहीं पर बहुत ही पुराना बुद्ध जी का मॉनेस्ट्री बना हुआ है जो कि बहुत ज्यादा पुराना है। दिरांग के बारे में यह है कि यहां पर दिरांग चू नाम की नदी बहती है सड़क के दाहिने साइड में बाए साइड में बस्ती बसी हुई है और जहां दिरांग का गेट पड़ता है वहीं पर दाहिने साइड में पहाड़ी पर चढ़ के दिरांग जोंग करके जगह है जो कि यहां के राजा का घर हुआ करता था पहले के जमाने में, लेकिन सन 1962 में चाइना की लड़ाई में यहां के लोग बताते हैं कि चीन के अधिकारी अपना ऑफिस वहां बनाए रखे थे ऐसा सुना हम लोगों ने वहां के लोकल लोग से।
वहां हम लोगों ने देखा कि पुराने जमाने के घर कैसे होते थे, वँहा के राजा का घर कैसा होता था तो उसके भ्रंश मौजूद हैं आज भी और उसका रिनोवेशन चल रहा था इसलिए हम लोग अंदर नही जा पाए हो सकता है अगले कुछ सालों में आप सभी के लिए देखने लायक वह किया जा चुका होगा। दिरांग विलेज में ही एक मिडिल स्कूल भी मिला जो कि देखकर बड़ा अच्छा लगा, विद्यालय बंद था इसलिए वहां के टीचर और बाकी स्टाफ से मिल ना पाया। शाम को पहुंचते ही वेलकम ड्रिंक से हम लोगों का स्वागत हुआ जो कि वहां की लोकल चाय थी और बिना दूध की,शहद और चाय पत्ती की।चाय बहुत ही अच्छी लग रही थी ।
हम लोग जहां रुके थे उस होमस्टे का नाम था दिरांग जॉन्ग होमस्टे जो कि वहां के क्षेत्रीय निवासी अंकल,आंटी और उनके बेटे द्वारा संचालित किया जाता है और उसके बारे में मैं अगली पोस्ट में बताऊंगा।
अभी हम लोग नहा धोकर फ्रेश हो गए और घूमने का कीड़ा तो अंदर था ही तो यह हुआ कि अभी दो 4 घंटे बचे हैं उसका सदुपयोग कर लिया जाए फिर वही बगल में जो नदी बहती है उसी नदी के किनारे वाला रास्ता पकड़ा हम लोगों ने और सीधे पहुंच गए हम लोग नदी के किनारे पर। हम लोग वहां पर नदी के किनारे बैठे कुछ देर, बड़ा अच्छा लगा, बहुत ही मजा आया वहां दो तरफ से नदी आ रही थी एक तो तवांग की तरफ से और दूसरी एक नदी आ रही थी दिरांग वैली की तरफ से और इन दोनों का वह मीटिंग प्वाइंट था जहां हम लोग बैठे हुए थे। ऊपर तवांग की तरफ बारिश हो रही थी इसलिए थोड़ा सा मटमैला पानी आ रहा था तवांग की तरफ से लेकिन दिरांग वैली से जो पानी आ रहा था वह बिल्कुल साफ था। वहां के लोकल लोगों ने बताया कि इन नदियों में फिशिंग मना है ल, फिशिंग की नहीं की जाती है फिर भी कहीं ना कहीं से लोकल मछली मिल जाती है मार्केट में और शायद वहां इन मछलियों का रेट ₹600 किलो के आसपास था। वहां फोटो शोटो हुआ और संयोग ऐसा हुआ कि हमारा एक पढ़ाया हुआ छात्र वहां पर मिल गया और उसने मुझे पहचान लिया फिर उसके बाद काफी देर तक उसने वहां के लोकल घूमने वाली जगहों के बारे में बताया। फिर हम लोग घूमने निकले दिरांग मार्केट, मार्केट आने जाने का एक तरफ का किराया 250 रुपये था।
मार्केट से बेहतर हम लोगों को यहां दिरांग विलेज ही लगा, यंहा भी रोजमर्रा की जरूरत के हिसाब से दुकानें हैं जंहा अमूमन सारी चीजें मिल जाती है लेकिन दिरांग विलेज में कोई रेस्टोरेंट नही मिलेगा आपको सिवाय एक रजिस्टर्ड वाइन शॉप के बगल में आंटी की बनाई हुई पकौड़ी और आलू टिकिया के।
आपको अगर रेस्टोरेंट्स की आवश्यकता हो तो आपको 5 किलोमीटर आगे जाना पड़ेगा अतः उसी हिसाब से आप अपने जगह का चुनाव करें, हमें बहुत ज्यादा चिंता नहीं थी क्यों कि जंहा हम रुके थे वँहा घर का बना हुआ खाना/नाश्ता वगैरह उपलब्ध था तो हम लोगों ने इसी जगह को चुना रुकने के लिए। यहां पर बहुत भीड़ भाड़ नहीं थी बहुत अच्छा लग रहा था, मौसम का तो क्या ही कहना।
एकदम रोड के किनारे ही सटा हुआ हम लोगों का होमस्टे था और बहुत ही बेहतरीन लोकेशन थी और उसके बाद हम लोग वहां दिरांग विलेज के मार्केट की दुकानों पर गए यूं ही कुछ सामान लेने के लिए तो वहां पर पता चला कि कुछ बिहार के भाई लोग 25/30 साल पहले से आकर अपनी दुकान चलाते हैं और उनसे यह भी पता चला कि वो आज तक वहां के ज़मीन के मालिक नहीं हो सके क्योंकि अरुणाचल प्रदेश की सरकार बाहर के राज्यों के किसी भी व्यक्ति को वँहा की जमीन लेने का अधिकार नहीं देती है अतः वो लोग भी किराए पर ही रहते हैं और किराए पर दुकान भी चलाते हैं ।
एक चीज और बता दूंगा कि वहां पर सारा जो आपका रोजमर्रा का सामान होता है वह गुवाहाटी/ईटानगर से जाता है इसलिए ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बहुत ही ज्यादा महंगी हो जाती है तो सामान भी आपको थोड़ा सा महंगा मिलता है। आप ऐसे समझ लें कि यदि आपको शेयर टैक्सी द्वारा अगर गुवाहाटी से दिरांग जाना है तो प्रति व्यक्ति ₹1000 का किराया लगता है इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ट्रांसपोर्टेशन चार्ज कितना होता होगा तो हम लोगों ने कुछ सामान खरीदा कुछ के भाव पता किए तो कुछ चीजें तो प्रिंट रेट पर मिलीं मगर कुछ चीजें ज्यादा महंगी मिलीं और मजे की बात आपको बता दूं अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा वाइन और बियर वगैरह टैक्स फ्री है जो बियर की केन हमारे उत्तर प्रदेश में लगभग ₹120-₹130 की आती है शायद, वहां पर ₹60 में मिलती है, मैकडावेल रम की फुल बॉटल लगभग ₹200 की, इसी तरह से हमारे यंहा के आधे रेट पर सारा ये सब वहां मिल रहा था ।
अगले पोस्ट में हम दिरांग के आसपास आपको घुमाएंगे क्यों कि यंहा भी बहुत सी ऐसी जगह है जो कि घूमने लायक हैं और बहुत अच्छी अच्छी जगह थी तो यह हमारे बकेट लिस्ट में पहले से था कि दिरांग में थ्री नाईट हॉल्ट का। अगले दो दिन यंही रहेंगे और आपको घुमाएंगे दिरांग..
होमस्टे का खर्च 1300 रुपये प्रति रूम
शाकाहारी भोजन 140 प्रति व्यक्ति
नॉन वेज (चिकन) 150 पर प्लेट
रोटी 20 प्रति पीस
चाय कॉम्प्लीमेंट्री
क्रमशः
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