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पूर्वोत्तर राज्य की सैर (छठा दिन)

अपनी यात्रा के अगले दिन हम लोग निकल पड़ते हैं अपने उस पड़ाव की तरफ जंहा के लिए इतनी दूर से चले थे..तवांग
तवांग, अरुणाचल प्रदेश का एक बहुत ही खूबसूरत और विश्व प्रसिद्ध परिक्षेत्र है। यंहा की मॉनेस्ट्री एशिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित मॉनेस्ट्री मानी जाती है जंहा बुद्धिज्म की शिक्षा दीक्षा भी प्रदान की जाती है और इसी क्षेत्र से हम लोगों को तिबतन सभ्यता की जानकारी भी प्राप्त होती है।
दिरांग से लगभग 140 किलोमीटर दूर स्थित इस जगह को जाने वाले रास्ते पर न जाने कितने पिकनिक स्पॉट हैं जंहा आप रुक कर उन पलों का भरपूर लुत्फ उठा सकते हैं। इसी क्रम में दिरांग से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक मोहन कैम्प नामक जगह पड़ती है जंहा होटल समझाना पर हम लोगों का ब्रेकफ़ास्ट हुआ, जो कि दिरांग से लगभग 37 किलोमीटर दूर NH13 पर बना था, उसके आस पास और भी चार छह होटल तथा आठ दस दुकानें भी थीं जंहा नेपाल और चीन के विभिन्न खाद्य पदार्थ मिलते हैं। जिनकी कीमत व्यक्ति को देखकर अलग अलग बताया जाता है, तो आप थोड़ा समझदारी से ही क्रय करें। ये एक ऐसा स्थान है जंहा दोनो तरफ से आने वाली गाड़ियां रुकती हैं और नाश्ता/भोजन वगैरह करते हैं। यंहा से लगभग 45 किलोमीटर आगे बढ़ने पर सेला पास आता है जंहा मौसम ऐसा हो जाता है एकदम ज़ीरो विसिबिलिटी हो जाती है, कुछ देर के लिए रुकते हैं हम लोग मग़र कुछ भी दिखाई नही देता, इसलिए हम लोग वापसी के लिए इसे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं, यंहा गाड़ी से बाहर निकलते ही हल्की बारिश और जबरदस्त ठंड ने हम लोगों का स्वागत किया, टी शर्ट में होने के कारण ठंड तो बहुत लग रही थी लेकिन फ़ोटो शूट करवाने के चक्कर मे जैकेट नही डाले और 5 मिनट में ठंडा के आ गए गाड़ी में और निकल गए अगले पड़ाव के लिए।
हम लोगों का अगला पड़ाव जसवंत गढ़ वॉर मेमोरियल था, जंहा पर 1962 की युद्ध मे शहीद हुए तीन देशभक्तों की याद में उनके अस्त्र शस्त्र वगैरह सहेज के रखे गए हैं। वँहा ड्यूटी पर तैनात एक आर्मी ऑफीसर ने हमे वँहा की कहानी बताई। (सुरक्षा कारणों से उनके साथ की पिक हमने नही लगाई है।)
यंहा इन तीन अमर शहीदों के दर्शन उपरांत हम लोग उस ग्रेवयार्ड को भी देखे जंहा चीनी सैनिकों को दफनाया गया था। पास में ही वो बंकर भी मौजूद था जो उस समय सन 1962 में उपयोग में लाया गया था, भारतीय सेना द्वारा उस पेड़ को भी सहेज के रखा गया है जंहा देश के ये नायक शहीद हुए थे। सड़क के दाएं तरफ में आर्मी कैंटीन भी थी जंहा आप बिलकुल वाजिब कीमत पर नाश्ता वगैरह आर्डर कर सकते हैं, यंहा आपको आर्मी की तरफ से गर्म पानी और चाय सेवा के रूप में निःशुल्क मिलती है, सेल्फ सर्विस के तहत, इसी रेस्टोरेंट में एक तरफ स्काई वाक सिटींग एरिया भी था जंहा बैठ के हम सभी ने चाय वगैरह पी, यंहा से नीचे का और पहाड़ों का नज़ारा बहुत ग़ज़ब का था। यंहा आर्मी द्वारा संचालित एक NON GST कैण्टीन भी है जंहा आप ठंड के हिसाब से गर्म कपड़े खरीद सकते हैं। कुछ पल वँहा बिता, चाय नाश्ता करने के बाद हम लोग बढ़ते हैं अपने अगले पड़ाव की ओर जो कि था जंग फॉल, वैसे तो ये एक घण्टे का सफर था यंहा से, वो भी सिर्फ 24 किलोमीटर का, मग़र जंग नामक टाउन में वन वे होने के कारण जाम की स्थिति थी इसलिए हम लोगों को इस सफर में दो घण्टे लग गए।
जंग वाटर फॉल के पास गाड़ी पार्क करके हम लोग नीचे की तरफ सीढ़ियों से उतरे, इतनी ऊंचाई से गिरने वाला झरना काफी दिनो बाद देखने को मिला, और उसी के पास बहती नदी का दृश्य बहुत ही विहंगम नजर आ रहा था। नदी के पानी का बहाव तेज होने के कारण हम में से कोई भी नदी में अंदर तक नही गया, ऐसी जगहों पर पानी मे अंदर की ओर जाने से बचना चहिए, डूबने का डर तो बिल्कुल भी नही होता लेकिन पानी का बहाव इतना तेज होता है कि हल्का सा पाँव फिसला नही कि तुरन्त आप पानी के बहाव से बहने लगेंगे।
यंहा एक दो घण्टे बिताने के बाद हम लोग निकलते हैं अपने अगले और आज के अंतिम पड़ाव अपने होटल आनंद, तवांग के लिए, जंहा के ओनर गर्मजोशी से हम लोगों का इन्तेजार कर रहे थे। जंग फॉल से लगभग 30 किलोमीटर का सफर बाकी था जिसे पूरा करने में हमे लगभग डेढ़ घण्टे का समय लगा। होटल पहुचते ही हम लोगों का स्वागत होटल के ओनर जो कि मोनपा ही थे तो उन्होंने अपनी परंपरा अनुसार (बुद्धिष्ट कल्चर) हम सभी लोगों को सफेद शॉल/गमछा ओढ़ाकर स्वागत किया। जिसे वँहा के लोग नाम से जानते हैं।
अपने अपने कमरे में पहुचते ही हम लोगो को कंप्लीमेंट्री चाय भी उन्होंने भेजवाई। थोड़ा सा फ्रेश वगैरह हो के हम लोग निकले वँहा का मार्केट घूमने जंहा कुछ लोगों ने अपने लिए जैकेट,कैप वगैरह की खरीदारी की और यंहा भी बिना बारगेनिंग काम नही बना। फिर फुल्की की दुकान पर फुल्की का भी आनंद लिया गया और उन्होंने ही रात के डिनर के लिए हम लोगों ने मा काली होटल तवांग के बारे में सजेस्ट किया तो हम लोग पहुचे उसी होटल में डिनर के लिए, वँहा के ओनर ने एकदम पारदर्शी रूप से अपना किचन एरिया दिखाया और सारे भोजन भी दिखाए, वो एक बंगाली थे, उनके यंहा लगभग सारी डिश मौजूद थी, नॉन वेज चाहने वाले साथियों को बता दूं कि वँहा उन सब चीजों में भी मसालों का प्रयोग बहुत कम होता है जिसकी वजह से अपने यंहा का स्वाद नही मिल पाता, तो उससे बढ़िया वेज थाली का चुनाव करें,
 हम लोगों ने वेज थाली का आर्डर किया जिसमे एक व्यक्ति अनलिमिटेड भोजन कर सकता है, रोटी के लिए अलग से चार्ज था। वेज थाली का भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था और उसमें चार तरह की सब्जियां, तड़का लगी दाल, जीरा राइस, अचार वगैरह थे।
डिनर करके हम लोग अपने होटल का रुख किये जंहा पहुच के होटल के ओनर से काफी देर तक वँहा की सभ्यता के बारे में, उनके त्योहारों के बारे में, और वँहा के लोकल घूमे जाने वाले स्थानों के बारे मे चर्चा हुई, चूंकि हम लोगों को अगले दिन अपने सपनों की जगह पहुचना था जो कि इस पूरे ट्रिप का मुख्य स्पॉट था, तो उनसे विदा लेते हुए अपने कमरे में आ गए, थकान हावी होने के कारण तुरन्त नींद भी अस गयी।
मिलते हैं कल सुबह अपने अगले पड़ाव पर..
क्रमशः




































































 

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